II श्रीराम समर्थ II
| विवेके क्रिया आपुली पालटावी। |
| अती आदरे शुद्ध क्रीया धरावी॥ |
| जनीं बोलण्यासारिखे चाल बापा। |
| मना कल्पना सोडिं संसारतापा॥१०५॥ |
जय जय रघुवीर समर्थ !
| विवेके क्रिया आपुली पालटावी। |
| अती आदरे शुद्ध क्रीया धरावी॥ |
| जनीं बोलण्यासारिखे चाल बापा। |
| मना कल्पना सोडिं संसारतापा॥१०५॥ |
| क्रियेवीण नानापरी बोलिजेंते। |
| परी चित्त दुश्चीत तें लाजवीतें॥ |
| मना कल्पना धीट सैराट धांवे। |
| तया मानवा देव कैसेनि पावे॥१०४॥ |
| हरीकीर्तनीं प्रीति रामीं धरावी। |
| देहेबुद्धि नीरूपणीं वीसरावी॥ |
| परद्रव्य आणीक कांता परायी। |
| यदर्थीं मना सांडि जीवीं करावी॥१०३॥ |
| अती लीनता सर्वभावे स्वभावें। |
| जना सज्जनालागिं संतोषवावे॥ |
| देहे कारणीं सर्व लावीत जावें। |
| सगूणीं अती आदरेसी भजावें॥१०२॥ |
| जया नावडे नाम त्या यम जाची। |
| विकल्पे उठे तर्क त्या नर्क ची ची॥ |
| म्हणोनि अती आदरे नाम घ्यावे। |
| मुखे बोलतां दोष जाती स्वभावें॥१०१॥ |
यथासांग रे कर्म तेंहि घडेना। |
घडे धर्म तें पुण्य गांठी पडेना॥ |
दया पाहतां सर्व भुतीं असेना। |
फुकाचे मुखी नाम तेंही वसेना॥१००॥ |
| जगीं धन्य वाराणसी पुण्यराशी। |
| तयेमाजि आतां गतीं पूर्वजांसी॥ |
| मुखे रामनामावळी नित्य काळीं। |
| जिवा हित सांगे सदा चंद्रमौळी॥९९॥ |
| हरीनाम नेमस्त पाषाण तारी। |
| बहु तारीले मानवी देहधारी॥ |
| तया रामनामीं सदा जो विकल्पी। |
| वदेना कदा जीव तो पापरूपी॥९८॥ |
मुखी नाम नाहीं तया मुक्ति कैंची। |
अहंतागुणे यातना ते फुकाची॥ |
पुढे अंत येईल तो दैन्यवाणा। |
म्हणोनि म्हणा रे म्हणा देवराणा॥९७॥ |
महाभक्त प्रल्हाद हा दैत्यकूळीं। |
जपे रामनामावळी नित्यकाळीं॥ |
पिता पापरुपी तया देखवेना। |
जनी दैत्य तो नाम मुखे म्हणेना॥९६॥ |
अजामेळ पापी वदे पुत्रकामे। |
तया मुक्ति नारायणाचेनि नामें॥ |
शुकाकारणे कुंटणी राम वाणी। |
मुखें बोलतां ख्याति जाली पुराणीं॥९५॥ |
तिन्ही लोक जाळुं शके कोप येतां। |
निवाला हरु तो मुखे नाम घेतां॥ |
जपे आदरें पार्वती विश्वमाता। |
म्हणोनी म्हणा तेंचि हे नाम आतां॥९४॥ |
जगीं पाहतां देव हा अन्नदाता। |
तया लागली तत्त्वता सार चिंता॥ |
तयाचे मुखी नाम घेता फुकाचे। |
मना सांग पां रे तुझे काय वेंचे॥९३॥ |
अती आदरें सर्वही नामघोषे। |
गिरीकंदरी जाइजे दूरि दोषें॥ |
हरी तिष्ठतू तोषला नामघोषें। |
विशेषें हरामानसीं रामपीसें॥९२॥ |
नको वीट मानूं रघुनायकाचा। |
अती आदरे बोलिजे राम वाचा॥ |
न वेंचे मुखी सांपडे रे फुकाचा। |
करीं घोष त्या जानकीवल्लभाचा॥९१॥ |
न ये राम वाणी तया थोर हाणी। |
जनीं व्यर्थ प्राणी तया नाम कोणी॥ |
हरीनाम हें वेदशास्त्रीं पुराणीं। |
बहू आगळे बोलिली व्यासवाणी॥९०॥ |
जनीं भोजनी नाम वाचे वदावें। |
अती आदरे गद्यघोषे म्हणावे॥ |
हरीचिंतने अन्न सेवीत जावे। |
तरी श्रीहरी पाविजेतो स्वभावें॥८९॥ |
बहू चांगले नाम या राघवाचे। |
अती साजिरे स्वल्प सोपे फुकाचे॥ |
करी मूळ निर्मूळ घेता भवाचे। |
जिवां मानवां हेंचि कैवल्य साचें॥८८॥ |
मुखी राम त्या काम बाधुं शकेना। |
गुणे इष्ट धारिष्ट त्याचे चुकेना॥ |
हरीभक्त तो शक्त कामास भारी। |
जगीं धन्य तो मारुती ब्रह्मचारी॥८७॥ |
| मुखी राम विश्राम तेथेचि आहे। |
| सदानंद आनंद सेवोनि आहे॥ |
| तयावीण तो शीण संदेहकारी। |
| निजधाम हे नाम शोकापहारी॥८६॥ |
| भजा राम विश्राम योगेश्वरांचा। |
| जपू नेमिला नेम गौरीहराचा॥ |
| स्वये नीववी तापसी चंद्रमौळी। |
| तुम्हां सोडवी राम हाअंतकाळीं॥८५॥ |
| विठोने शिरी वाहिला देवराणा। |
| तया अंतरी ध्यास रे त्यासि नेणा॥ |
| निवाला स्वये तापसी चंद्रमौळी। |
| जिवा सोडवी राम हाअंतकाळीं॥८४॥ |
जय जय रघुवीर समर्थ ! |
| बहु नाम या रामनामी तुळेना। |
| अभाग्या नरा पामरा हे कळेंना॥ |
| विषा औषधा घेतले पार्वतीशे। |
| जिवा मानवा किंकरा कोण पुसे॥८२॥ |