Friday, August 31, 2012

श्लोक १३७


II श्रीराम समर्थ II

जिवां श्रेष्ठ ते स्पष्ट सांगोनि गेले।
परी जीव अज्ञान तैसेचि ठेले॥
देहेबुद्धिचें कर्म खोटें टळेना।
जुने ठेवणें मीपणें आकळेना॥१३७॥

 
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण



जय जय रघुवीर समर्थ !

Sunday, August 26, 2012

श्लोक १३६

II श्रीराम समर्थ II

भयें व्यापिले सर्व ब्रह्मांड आहे।
भयातीत तें संत आनंत पाहे॥
जया पाहतां द्वैत कांही दिसेना।
भयो मानसीं सर्वथाही असेना॥१३६॥


डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण

जय जय रघुवीर समर्थ !

Friday, August 17, 2012

श्लोक १३५

II श्रीराम समर्थ II

धरीं रे मना संगती सज्जनाची।
जेणें वृत्ति हे पालटे दुर्जनाची॥
बळे भाव सद्बुद्धि सन्मार्ग लागे।
महाक्रुर तो काळ विक्राळ भंगे॥१३५॥
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण


जय जय रघुवीर समर्थ !
 

Friday, August 10, 2012

श्लोक १३४

II श्रीराम समर्थ II

नसे गर्व आंगी सदा वीतरागी।
क्षमा शांति भोगी दयादक्ष योगी॥
नसे लोभ ना क्षोम ना दैन्यवाणा।
इहीं लक्षणी जाणिजे योगिराणा॥१३४॥

डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण


जय जय रघुवीर समर्थ !
 

Friday, August 3, 2012

श्लोक १३३

II श्रीराम समर्थ II

हरीभक्त वीरक्त विज्ञानराशी।
जेणे मानसी स्थापिलें निश्चयासी॥
तया दर्शने स्पर्शने पुण्य जोडे।
तया भाषणें नष्ट संदेह मोडे॥१३३॥

जय जय रघुवीर समर्थ !