Friday, October 11, 2013

श्लोक १९५

||श्रीराम समर्थ ||

बसे हृदयी देव तो जाण ऐसा।
नभाचेपरी व्यापकू जाण तैसा॥
सदा संचला येत ना जात कांही।
तयावीण कोठे रिता ठाव नाही॥१९५॥

जय जय रघुवीर समर्थ !

2 comments:

lochan kate said...

श्लोक १९५.......
वसे तो ह्रदयी देव तो जाण ऐसा |
नभाचे परी व्यापकु जाण तैसा ||
सदा संचला येत ना जात कांही |
तया वीण कोठे रिता ठाव नाही ||१९५||
हिन्दी में .......
सदा रहता है वो ह्रदय में जानो ऐसा |
नभ के समान व्यापक है वो जैसा ||
सदा स,न्चारित होता जाता है वो |
उसके बिना कुछ भी रिता ना है जो ||१९५||
अर्थ.....श्री समर्थ रामदास स्वामी जी कहते है कि हे मानव मन ! वो भगवान सबके ह्रदय में बसता है इस बात का विश्वास रखो | वो नभ के समान सभी ओर छाया हुआ है |सब शानों पर व्याप्त है |उसका संचार सब जगह होता रहता है |उसके बिना इस जग का , संसार का कोई भी भाग खाली है अर्थात उसकी सभी ओर व्यापकता है || उसके बिना यह संसार अधुरा है |

suvarna lele said...

मागच्या श्लोकातील प्रश्नांची उत्तरे समर्थ देऊ लागतात .हा देव नभासारखा ,आकाशा सारखा व्यापक आहे .सर्वत्र संचला आहे ,त्याच्याशिवाय एकही जागा नाही जेथे तो नाही .त्याला जाणे नाही ,येणे नाही ,सूक्ष्माहून सूक्ष्म अशा अणूरेणू मध्ये ही तो आहे .अशा सर्व व्यापी असणा-या रामावाचून कोणतेही ठिकाण नाही