Friday, October 4, 2013

श्लोक १९४

|| श्रीराम समर्थ ||

वसे हृदयी देव तो कोण कैसा।
पुसे आदरे साधकू प्रश्न ऐसा॥
देहे टाकिता देव कोठे पहातो
परि मागुता ठाव कोठे रहातो॥१९४॥

जय जय रघुवीर समर्थ !

2 comments:

suvarna lele said...

देवाच्या शोधात असलेला साधक समर्थांना आदराने ,नम्रपणे विचारतो .'हृदयात रहाणारा देव कोण आहे ? कसा आहे ? देह टाकल्यावर तो देव कोठे रहातो ? पून्हा जन्म केव्हा व कसा येतो ? तो आपल्याला कसा ओळखता येणार ?

lochan kate said...

श्लोक १९४.........
वसे ह्रदयी देव तो कोण कैसा |
पुसे आदरे साधकू प्रश्न ऐसा ||
देहे टाकितां देव कोठे रहातो |
परी मागुता ठाव कोठे पहातो || १९४||
हिन्दी में.....

रहे जो ह्रदय में वो भगवन कैसा |
आदर से पूछे साधक को ये प्रश्न ऐसा ||
देह छोडते ईश्वर होता कहा रे |
पर होत उसक दूजा कोई ठिकाना ||१९४||
अर्थ......
श्री समर्थ रामदास स्वामीजी कहते है कि हे मानव मन ! जो हमारे ह्रदय में वास करते है वह भगवान कैसे है ? कौन है ? यह कोई नही जानता | साधू लोग अर्थात सज्जन लोग अत्यंत आदर पूर्वक यह जानना चाहते है कि अंत काल के पश्चात यह भगवान कहां रहते है ? क्या वो कोई दूसरा देह भी धारण करते है ?