देवाच्या शोधात असलेला साधक समर्थांना आदराने ,नम्रपणे विचारतो .'हृदयात रहाणारा देव कोण आहे ? कसा आहे ? देह टाकल्यावर तो देव कोठे रहातो ? पून्हा जन्म केव्हा व कसा येतो ? तो आपल्याला कसा ओळखता येणार ?
श्लोक १९४......... वसे ह्रदयी देव तो कोण कैसा | पुसे आदरे साधकू प्रश्न ऐसा || देहे टाकितां देव कोठे रहातो | परी मागुता ठाव कोठे पहातो || १९४|| हिन्दी में.....
रहे जो ह्रदय में वो भगवन कैसा | आदर से पूछे साधक को ये प्रश्न ऐसा || देह छोडते ईश्वर होता कहा रे | पर होत उसक दूजा कोई ठिकाना ||१९४|| अर्थ...... श्री समर्थ रामदास स्वामीजी कहते है कि हे मानव मन ! जो हमारे ह्रदय में वास करते है वह भगवान कैसे है ? कौन है ? यह कोई नही जानता | साधू लोग अर्थात सज्जन लोग अत्यंत आदर पूर्वक यह जानना चाहते है कि अंत काल के पश्चात यह भगवान कहां रहते है ? क्या वो कोई दूसरा देह भी धारण करते है ?
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देवाच्या शोधात असलेला साधक समर्थांना आदराने ,नम्रपणे विचारतो .'हृदयात रहाणारा देव कोण आहे ? कसा आहे ? देह टाकल्यावर तो देव कोठे रहातो ? पून्हा जन्म केव्हा व कसा येतो ? तो आपल्याला कसा ओळखता येणार ?
श्लोक १९४.........
वसे ह्रदयी देव तो कोण कैसा |
पुसे आदरे साधकू प्रश्न ऐसा ||
देहे टाकितां देव कोठे रहातो |
परी मागुता ठाव कोठे पहातो || १९४||
हिन्दी में.....
रहे जो ह्रदय में वो भगवन कैसा |
आदर से पूछे साधक को ये प्रश्न ऐसा ||
देह छोडते ईश्वर होता कहा रे |
पर होत उसक दूजा कोई ठिकाना ||१९४||
अर्थ......
श्री समर्थ रामदास स्वामीजी कहते है कि हे मानव मन ! जो हमारे ह्रदय में वास करते है वह भगवान कैसे है ? कौन है ? यह कोई नही जानता | साधू लोग अर्थात सज्जन लोग अत्यंत आदर पूर्वक यह जानना चाहते है कि अंत काल के पश्चात यह भगवान कहां रहते है ? क्या वो कोई दूसरा देह भी धारण करते है ?
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