Sunday, August 11, 2013

श्लोक १८६

|| श्रीराम समर्थ॥
सदा सर्वदा राम सन्नीध आहे।
मना सज्जना सत्य शोधुन पाहे॥
अखंडीत भेटी रघूराजयोगू।
मना सांडीं रे मीपणाचा वियोगू॥१८६॥
जय जय रघुवीर समर्थ !

1 comment:

lochan kate said...

श्लोक १८६.......
सदा सर्वदा राम सनिध्य आहे |
मना सज्जना सत्य शोधूनि पाहे |
अखंडीत भेटी रघूराज योगू |
मना सांडि रे मी पणाचा वियोगू||१८६||
हिन्दी में....
सदा सर्वदा राम सानिध्य रहता |
अरे मन क्या सत्य वो तो ढूंढता ||
अखंड मिलता रघूराज योगि |
अरे मन छोडो अहं का वियोगि ||१८६||
अर्थ...... श्री समर्थ रामदास स्वामी जी कह्ते है कि हे मानव मन ! सदैव श्रीराम आपके सानिध्य में है केवल सत्य पहचानने की आवश्यक्ता है | जिसको श्रीराम अखंड रुप से प्राप्त हो गये हैं वह तो व्यक्ति राजयोगि है | परन्तु अहंकार के कारण इस राजयोग का वियोग प्राप्त होता है अत: उस भगवद् प्राप्ति की कल्पना को छोडने का प्रयास नहीं करना चाहिये |