tag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post3582295738893114081..comments2024-01-21T18:02:04.156+05:30Comments on समर्थ रामदास - साहित्य : श्लोक १८६Kalyan Swami http://www.blogger.com/profile/08821565452313740246noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post-39209593653859764482013-09-17T22:28:28.600+05:302013-09-17T22:28:28.600+05:30श्लोक १८६.......
सदा सर्वदा राम सनिध्य आहे |
मना स...श्लोक १८६.......<br />सदा सर्वदा राम सनिध्य आहे |<br />मना सज्जना सत्य शोधूनि पाहे |<br />अखंडीत भेटी रघूराज योगू |<br />मना सांडि रे मी पणाचा वियोगू||१८६||<br />हिन्दी में....<br />सदा सर्वदा राम सानिध्य रहता |<br />अरे मन क्या सत्य वो तो ढूंढता ||<br />अखंड मिलता रघूराज योगि |<br />अरे मन छोडो अहं का वियोगि ||१८६||<br />अर्थ...... श्री समर्थ रामदास स्वामी जी कह्ते है कि हे मानव मन ! सदैव श्रीराम आपके सानिध्य में है केवल सत्य पहचानने की आवश्यक्ता है | जिसको श्रीराम अखंड रुप से प्राप्त हो गये हैं वह तो व्यक्ति राजयोगि है | परन्तु अहंकार के कारण इस राजयोग का वियोग प्राप्त होता है अत: उस भगवद् प्राप्ति की कल्पना को छोडने का प्रयास नहीं करना चाहिये |<br />lochan katehttps://www.blogger.com/profile/16403239198792263722noreply@blogger.com