श्लोक १०४ ... क्रिये विण नाना परी बोलिजेते | परी चित्त दुश्चित ते लाजविते || मना कल्पना धीट सैराट धांवे | तया मानवा देव कैसेनि पावे ||१०४ || हिन्दी में ... क्रिया बिन जो कुछ बोले है नाना | परंतु चित्त दुश्चित्त है लाज बाना || मन: कल्पना धैर्य सर्रास दौडे| उस मानव को भगवान कैसे है छोडे ||१०४|| अर्थ .... श्री रामदासजी कहते है कि हे मानव मन ! इस संसार में कितने ही लोग ऐसे है जो कार्य किये बिना ही विभिन्न प्रकार की बातें करते है , परन्तु उनका मन उन्हे अन्दर से कचोटता रहता है |अत: जिसके मन की कल्पनायें या विचार धैर्य पूर्वक नही दौडते है , उसको परमेश्वर की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? इसलिये रामनाम की दौड धैर्य पूर्वक लगाना आवश्यक है अर्थात् नामस्मरण सतत् करते रहना चाहिये | जिससे परमेश्वर की प्राप्ति सहज रुप से हो सकती है |
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श्लोक १०४ ...
क्रिये विण नाना परी बोलिजेते |
परी चित्त दुश्चित ते लाजविते ||
मना कल्पना धीट सैराट धांवे |
तया मानवा देव कैसेनि पावे ||१०४ ||
हिन्दी में ...
क्रिया बिन जो कुछ बोले है नाना |
परंतु चित्त दुश्चित्त है लाज बाना ||
मन: कल्पना धैर्य सर्रास दौडे|
उस मानव को भगवान कैसे है छोडे ||१०४||
अर्थ ....
श्री रामदासजी कहते है कि हे मानव मन ! इस संसार में कितने ही लोग ऐसे है जो कार्य किये बिना ही विभिन्न प्रकार की बातें करते है , परन्तु उनका मन उन्हे अन्दर से कचोटता रहता है |अत: जिसके मन की कल्पनायें या विचार धैर्य पूर्वक नही दौडते है , उसको परमेश्वर की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? इसलिये रामनाम की दौड धैर्य पूर्वक लगाना आवश्यक है अर्थात् नामस्मरण सतत् करते रहना चाहिये | जिससे परमेश्वर की प्राप्ति सहज रुप से हो सकती है |
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