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Friday, October 25, 2013
श्लोक १९७
||श्रीराम समर्थ ||
नभासारिखे
रुप
या
राघवाचे।
मनी
चिंतिता
मूळ
तुटे
भवाचे॥
तया
पाहता
देहबुद्धी
उरेना।
सदा
सर्वदा
आर्त
पोटी
पुरेना॥१९७॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, October 18, 2013
श्लोक १९६
||श्रीराम समर्थ ||
नभी
वावरे
जा
अणुरेणु
काही।
रिता
ठाव
या
राघवेवीण
नाही॥
तया
पाहता
पाहता
तोचि
जाले।
तेथे
लक्ष
आलक्ष
सर्वे
बुडाले॥१९६॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, October 11, 2013
श्लोक १९५
||श्रीराम समर्थ ||
बसे हृदयी देव तो जाण ऐसा।
नभाचेपरी व्यापकू जाण तैसा॥
सदा संचला येत ना जात कांही।
तयावीण कोठे रिता ठाव नाही॥१९५॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, October 4, 2013
श्लोक १९४
|| श्रीराम समर्थ ||
वसे
हृदयी
देव
तो
कोण
कैसा।
पुसे
आदरे
साधकू
प्रश्न
ऐसा॥
देहे
टाकिता
देव
कोठे
पहातो
।
परि
मागुता
ठाव
कोठे
रहातो॥१९४॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
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