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Friday, August 30, 2013
श्लोक १८९
।। श्रीराम समर्थ ।।
मही निर्मिली देव तो ओळखावा।
जया पाहतां मोक्ष तत्काळ जीवा॥
तया निर्गुणालागी गूणी पहावे।
परी संग सोडुनि सुखे रहावे॥१८९॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, August 23, 2013
श्लोक १८८
।। श्रीराम समर्थ ।।
देहेभान हे ज्ञानशस्त्रे खुडावे।
विदेहीपणे भक्तिमार्गेचि जावे॥
विरक्तीबळे निंद्य सर्वै त्यजावे।
परी संग सोडुनि सुखी रहावे॥१८८॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
श्लोक १८७
।। श्रीराम समर्थ ।।
भुते पिंड ब्रह्मांड
हे ऐक्य आहे।
परी सर्वही स्वस्वरुपी न साहे॥
मना भासले सर्व काही पहावे।
परी संग सोडुनि सुखी रहावे॥१८७॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Sunday, August 11, 2013
श्लोक १८६
||
श्रीराम समर्थ॥
सदा सर्वदा राम सन्नीध आहे।
मना सज्जना सत्य शोधुन पाहे॥
अखंडीत भेटी रघूराजयोगू।
मना सांडीं रे मीपणाचा वियोगू॥१८६॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, August 2, 2013
श्लोक १८५
II श्रीराम समर्थ II
लपावे अति आदरे रामरुपी।
भयातीत निश्चीत ये स्वस्वरुपी॥
कदा तो जनी पाहतांही दिसेना।
सदा ऐक्य तो भिन्नभावे वसेना॥१८५॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
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