II श्रीराम समर्थ II
अती आदरें सर्वही नामघोषे। |
गिरीकंदरी जाइजे दूरि दोषें॥ |
हरी तिष्ठतू तोषला नामघोषें। |
विशेषें हरामानसीं रामपीसें॥९२॥ |
अती आदरें सर्वही नामघोषे। |
गिरीकंदरी जाइजे दूरि दोषें॥ |
हरी तिष्ठतू तोषला नामघोषें। |
विशेषें हरामानसीं रामपीसें॥९२॥ |
नको वीट मानूं रघुनायकाचा। |
अती आदरे बोलिजे राम वाचा॥ |
न वेंचे मुखी सांपडे रे फुकाचा। |
करीं घोष त्या जानकीवल्लभाचा॥९१॥ |
न ये राम वाणी तया थोर हाणी। |
जनीं व्यर्थ प्राणी तया नाम कोणी॥ |
हरीनाम हें वेदशास्त्रीं पुराणीं। |
बहू आगळे बोलिली व्यासवाणी॥९०॥ |
जनीं भोजनी नाम वाचे वदावें। |
अती आदरे गद्यघोषे म्हणावे॥ |
हरीचिंतने अन्न सेवीत जावे। |
तरी श्रीहरी पाविजेतो स्वभावें॥८९॥ |
बहू चांगले नाम या राघवाचे। |
अती साजिरे स्वल्प सोपे फुकाचे॥ |
करी मूळ निर्मूळ घेता भवाचे। |
जिवां मानवां हेंचि कैवल्य साचें॥८८॥ |