II श्रीराम समर्थ II
सदा आर्जवी प्रिय जो सर्व लोकी |
सदा सर्वदा सत्यवादी विवेकी ||
न बोले कदा मिथ्य वाचा त्रिवाचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा ||श्रीराम || ५३||
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, December 31, 2010
Friday, December 24, 2010
श्लोक ५२
II श्रीराम समर्थ II
जय जय रघुवीर समर्थ !
क्रमी वेळ जो तत्व चिंतानुवादे |
न लिंपे कदा दंभ वादे विवादे||
करी सूख संवाद जो ऊगमाचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा|| ५२||
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
न लिंपे कदा दंभ वादे विवादे||
करी सूख संवाद जो ऊगमाचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा|| ५२||
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, December 17, 2010
श्लोक ५१
II श्रीराम समर्थ II
मदें मत्सरें सांडिली स्वार्थबुद्धी।
प्रपंचीक नाहीं जयातें उपाधी॥
सदा बोलणे नम्र वाचा सुवाचा।
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा||श्रीराम|| ॥५१॥
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
मदें मत्सरें सांडिली स्वार्थबुद्धी।
प्रपंचीक नाहीं जयातें उपाधी॥
सदा बोलणे नम्र वाचा सुवाचा।
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा||श्रीराम|| ॥५१॥
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, December 10, 2010
श्लोक ५०
II श्रीराम समर्थ II
नसे अंतरी काम कारी विकारी|
उदासीन जो तापसी ब्रह्मचारी||
निवाला मनी लेश नाही तमाचा|
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा||श्रीराम||५०||
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
नसे अंतरी काम कारी विकारी|
उदासीन जो तापसी ब्रह्मचारी||
निवाला मनी लेश नाही तमाचा|
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा||श्रीराम||५०||
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, December 3, 2010
श्लोक ४९
II श्रीराम समर्थ II
सदा बोलण्या सारिखे चालताहे |
अनेकी सदा एक देवासि पाहे||
सगुणी भजे लेश नाही भ्रमाचा|
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा||श्रीराम||४९||
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
सदा बोलण्या सारिखे चालताहे |
अनेकी सदा एक देवासि पाहे||
सगुणी भजे लेश नाही भ्रमाचा|
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा||श्रीराम||४९||
डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण
जय जय रघुवीर समर्थ !
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