Friday, December 20, 2013

श्लोक २०५

||श्रीराम समर्थ ||

मनाची शते ऐकता दोष जाती।
मतीमंद ते साधना योग्य होती॥
चढे ज्ञान वैराग्य सामर्थ्य अंगी।
म्हणे दास विश्वासत मुक्ति भोगी॥२०५॥


जय जय रघुवीर समर्थ !  जय जय रघुवीर समर्थ !  जय जय रघुवीर समर्थ !

2 comments:

lochan kate said...

श्लोक २०५.....
मनाची शते ऐकता दोष जाती | मती मंद ते साधना योग्य होती ||
चढे ज्ञान वैराग्य सामर्थ्य अंगी | म्हणे दास विश्वांसता मुक्ति भोगी ||२०५||
हिन्दी में....
अरे मन राम गुण सुन दोष जाते |
मती मंद वो साधन , रे योग्य होते ||
होता सामर्थ्य , वैराग्य ये ज्ञान जिसको |
वही दास विश्वास से मुक्ति उसको ||२०५||
अर्थ.......
श्री समर्थ रामदास स्वामी जी कहते है कि हे मानव मन ! मन के लिये दी ग ई यह बातें मानने से , इन पर अमल करने से , सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते है और अज्ञानी व्यक्ति को साधना प्राप्त हो जाती है | जिससे वह योग्य व्यक्ति बनकर समाज के सामने प्रस्तुत हो सकता है | इसके पठन पाठन से , मनन से मानव को ज्ञान तथा वैराग्य अनुक्रम से प्राप्त होकर उसका सामर्थ्य बढेगा | श्री समर्थ रामदास स्वामी जी कहते है कि हे मनुष्य ! वोश्वास रखो उस प्रभु राम पर जिसकी निश्चल भक्ति से तुम्हे मुक्ति अवश्य प्राप्त होगी ||
||श्री जय जय रघुवीर समर्थ ||

suvarna lele said...

हा श्लोक फलश्रुतीचा आहे हे २०४ मनाचे श्लोक मनापासून वाचून ,त्यांचे चिंतन करून एकले ,वाचले तर मतीमंद ,म्हणजे जड बुद्धीचा माणूसही सगळ्या दोषांपासून मुक्त होतो साधना करण्यासाठी अधिकारी होतो .ज्ञान वैराग्य संपन्न होतो .मग तो साधक मुक्तीचे सुख अनुभवतो .