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Friday, September 27, 2013
श्लोक १९३
|| श्रीराम समर्थ ||
नव्हे
जाणता
नेणता
देवराणा।
न
ये
वर्णिता
वेदशास्त्रा
पुराणा॥
नव्हे
दृश्य
अदृश्य
साक्षी
तयाचा।
श्रुती
नेणती
नेणती
अंत
त्याचा॥१९३॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, September 20, 2013
श्लोक १९२
II श्रीराम समर्थ II
मना ना कळे ना ढळे रुप ज्याचे।
दुजेवीण तें ध्यान सर्वोत्तमाचे॥
तया खुण ते हीन दृष्टांत पाहे।
तेथे संग निःसंग दोन्ही न साहे॥१९२॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, September 13, 2013
श्लोक १९१
।। श्रीराम समर्थ ।।
देहेबुद्धिचा निश्चयो ज्या ढळेना।
तया ज्ञान कल्पांतकाळी कळेना॥
परब्रह्म तें मीपणे आकळेना।
मनी शून्य अज्ञान हे मावळेना॥१९१॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
Friday, September 6, 2013
श्लोक १९०
।। श्रीराम समर्थ ।।
नव्हे कार्यकर्ता नव्हे सृष्टिभर्ता।
पुरेहून पर्ता न लिंपे विवर्ता॥
तया निर्विकल्पासि कल्पित जावे।
परि संग सोडुनि सुखे रहावे॥१९०॥
जय जय रघुवीर समर्थ !
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