Friday, January 18, 2013

श्लोक १५७

II श्रीराम समर्थ II 
 
बहू शास्त्र धुंडाळता वाड आहे।
जया निश्चयो येक तोही न साहे॥
मती भांडती शास्त्रबोधे विरोधें।
गती खुंटती ज्ञानबोधे प्रबोधे॥१५७॥



जय जय रघुवीर समर्थ !

2 comments:

lochan kate said...

श्लोक १५७......
बहु शास्त्र धुंडाळिता वाड आहे |
जया निश्चयो येक तो ही न साहे ||
मती भांडती शास्त्र बोधे विरोधे |
गती खुंटती ज्ञान बोधे प्रबोधे ||१५७||
हिन्दी में ......
है शास्त्र सत्य रुप में पर विस्त्रुत है देखो |
मगर मत निश्चित नही सब , अलग है सीखो||
सभी ज्ञानी है करते विवाद बहूत उस पर |
कोई नही समझता उसे कुंठीत ज्ञान यहीं पर ||१५७||
अर्थ....श्री समर्थ रामदास जी कहते है कि हे मानव मन ! शास्त्रों को अगर देखा जाये तो बहूत ही विस्त्रुत ज्ञान भरा हुआ है |पर यदि कोई अपना लक्ष्य बनाकर ज्ञान प्राप्त करना चाहे तो वह दूसरों से देखा नही जाता और अपनी अज्ञानता के कारण लोग उसे कष्ट पहूंचाने का प्रयास करते है | शास्त्र ज्ञान तो ढूंढने से प्राप्त होता है | ज्ञानी और अज्ञानी लोग उस पर व्यर्थ चर्चा या विवाद करते रहते है परन्तु मनुष्य की कुन्ठीत बुध्दि के कारण उसे जैसा चाहिये वैसा ज्ञान प्राप्त नही हो पाता |

suvarna lele said...

पुष्कळ हिंडून, वाड म्हणजे पुष्कळ हिंडले ,पुष्कळ वाचन केले ,तर मतामतांत वेगळे पणा असतो .व्यवहारात व शास्त्रकारांमध्ये मतभेद असतात ,त्यामुळे संदेह उत्पन्न होतात ..कोणाचे खरे मानायचे अशी द्विधा मन:स्थिती निर्माण होते .शास्त्रांचे शाब्दिक ज्ञान होते ,वक्तव्यही करता येते पण अहंमन्यता तशीच राहते .असमाधान तसेच राहते .
जेव्हा प्रबोध होतो ,आत्मज्ञान होते ,किंवा अद्न्यानाची निद्रा संपते तेव्हा जागृतावस्था येते .त्यासाठी अनेक शास्त्रांच्या मागे न लागता संत सज्जनाच्या शब्दावर विश्वास ठेवून आत्म्काल्यान साधून घ्यायला हवे .