II श्रीराम समर्थ II
महाभक्त प्रल्हाद हा दैत्यकूळीं। |
जपे रामनामावळी नित्यकाळीं॥ |
पिता पापरुपी तया देखवेना। |
जनी दैत्य तो नाम मुखे म्हणेना॥९६॥ |
जय जय रघुवीर समर्थ !
महाभक्त प्रल्हाद हा दैत्यकूळीं। |
जपे रामनामावळी नित्यकाळीं॥ |
पिता पापरुपी तया देखवेना। |
जनी दैत्य तो नाम मुखे म्हणेना॥९६॥ |
अजामेळ पापी वदे पुत्रकामे। |
तया मुक्ति नारायणाचेनि नामें॥ |
शुकाकारणे कुंटणी राम वाणी। |
मुखें बोलतां ख्याति जाली पुराणीं॥९५॥ |
तिन्ही लोक जाळुं शके कोप येतां। |
निवाला हरु तो मुखे नाम घेतां॥ |
जपे आदरें पार्वती विश्वमाता। |
म्हणोनी म्हणा तेंचि हे नाम आतां॥९४॥ |
जगीं पाहतां देव हा अन्नदाता। |
तया लागली तत्त्वता सार चिंता॥ |
तयाचे मुखी नाम घेता फुकाचे। |
मना सांग पां रे तुझे काय वेंचे॥९३॥ |