श्लोक १०२ .... अती लीनता सर्व भावे स्वभावे | जना सज्जना लागि संतोषवावे || देहे कारणी सर्व लावीत जावे | सगुणी अती आदरेसी भजावे ||१०२|| हिन्दी में... अतीलीनता से सब काम होये | जनी सज्जनी लोग संतोष पावे || देह के लिये कार्य करते रहो रे | सगुण को तु आदर से भजो रे ||१०२|| अर्थ..... श्री समर्थ रामदास जी कहते है कि हे मानव मन ! अत्यंत लीनता पूर्वक व्यवहार करनें से सज्जन लोगों को संतुष्ट किया जा सकता है | अत: भगवद् भजन में सब कुछ अर्पण करनें का प्रयत्न करना चाहिये | मनुष्य अपनें देह रक्षण के लिये कार्य करता है | अत: भगवद् भजन में सब कुछ अर्पण करके एवं अपने सद् गुणों से अत्यंत आदर पूर्वक श्रीराम जी का नाम स्मरण करते रहने से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है | यही मार्ग सुलभ है |
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श्लोक १०२ ....
अती लीनता सर्व भावे स्वभावे |
जना सज्जना लागि संतोषवावे ||
देहे कारणी सर्व लावीत जावे |
सगुणी अती आदरेसी भजावे ||१०२||
हिन्दी में...
अतीलीनता से सब काम होये |
जनी सज्जनी लोग संतोष पावे ||
देह के लिये कार्य करते रहो रे |
सगुण को तु आदर से भजो रे ||१०२||
अर्थ.....
श्री समर्थ रामदास जी कहते है कि हे मानव मन ! अत्यंत लीनता पूर्वक व्यवहार करनें से सज्जन लोगों को संतुष्ट किया जा सकता है | अत: भगवद् भजन में सब कुछ अर्पण करनें का प्रयत्न करना चाहिये | मनुष्य अपनें देह रक्षण के लिये कार्य करता है | अत: भगवद् भजन में सब कुछ अर्पण करके एवं अपने सद् गुणों से अत्यंत आदर पूर्वक श्रीराम जी का नाम स्मरण करते रहने से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है | यही मार्ग सुलभ है |
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