Friday, December 9, 2011

श्लोक १०२

II श्रीराम समर्थ II 

अती लीनता सर्वभावे स्वभावें।
जना सज्जनालागिं संतोषवावे॥
देहे कारणीं सर्व लावीत जावें।
सगूणीं अती आदरेसी भजावें॥१०२॥


जय जय रघुवीर समर्थ !

1 comment:

lochan kate said...

श्लोक १०२ ....
अती लीनता सर्व भावे स्वभावे |
जना सज्जना लागि संतोषवावे ||
देहे कारणी सर्व लावीत जावे |
सगुणी अती आदरेसी भजावे ||१०२||
हिन्दी में...
अतीलीनता से सब काम होये |
जनी सज्जनी लोग संतोष पावे ||
देह के लिये कार्य करते रहो रे |
सगुण को तु आदर से भजो रे ||१०२||
अर्थ.....
श्री समर्थ रामदास जी कहते है कि हे मानव मन ! अत्यंत लीनता पूर्वक व्यवहार करनें से सज्जन लोगों को संतुष्ट किया जा सकता है | अत: भगवद् भजन में सब कुछ अर्पण करनें का प्रयत्न करना चाहिये | मनुष्य अपनें देह रक्षण के लिये कार्य करता है | अत: भगवद् भजन में सब कुछ अर्पण करके एवं अपने सद् गुणों से अत्यंत आदर पूर्वक श्रीराम जी का नाम स्मरण करते रहने से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है | यही मार्ग सुलभ है |