tag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post3305683926726354376..comments2024-01-21T18:02:04.156+05:30Comments on समर्थ रामदास - साहित्य : श्लोक १९८Kalyan Swami http://www.blogger.com/profile/08821565452313740246noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post-23907956555670906322013-12-01T15:08:04.248+05:302013-12-01T15:08:04.248+05:30या दृश्य सृष्टीला आकाशाने व्यापले आहे .परंतू आकाशा...या दृश्य सृष्टीला आकाशाने व्यापले आहे .परंतू आकाशाची उपमा रघुनायकाला पुरेशी नाही . रघूनायक म्हणजेच राघव ,म्हणजे परब्रह्म तेच सर्वत्र भरून आहे .त्याच्या शिवाय दुसरे कोणीच नाही . जेथे व्यापायला दुसरे कांहीच नाही ,त्याला व्यापक हा शब्द सुध्दा पुरेसा नाही <br /><br /><br /><br />suvarna lelehttps://www.blogger.com/profile/11156252283324612159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post-6819488365073966382013-11-08T18:36:08.827+05:302013-11-08T18:36:08.827+05:30श्लोक १९८......
नभे व्यापिले सर्व स्रुष्टिस आहे |
...श्लोक १९८......<br />नभे व्यापिले सर्व स्रुष्टिस आहे |<br />रघुनायका ऊपमा ते न साहे ||<br />दुजेवीण जो तोचि तो हा स्वभावे |<br />तया व्यापकू व्यर्थ कैसे म्हणावे ||१९८||<br />हिन्दी में ......<br />आकाश में जो सर्व स्रुष्टि में होता |<br />रघुनायक को ऊपमा ना सहता ||||<br />दुजे बिन जो वह है ये स्वभवि ||<br />उसे व्यापक व्यर्थ कैसे कहे हम ||१९८||<br />अर्थ....श्री समर्थ रामदास स्वामी जी कहते है कि हे मानव मन! आकाश मे व्याप्त सब कुछ दिखाई देता है परन्तु श्रीराम का प्रत्यक्ष में द्रुष्टान्त होना सहनशक्ति से परे है || अत: उनकी तुलना करना किसी अन्य से संम्भव ही नही है | स्वभावत: परमात्मा की हमनें अद्वैत रुप में कल्पना की है अत: उसकी हम व्यापक रुप में ही कल्पना करते है तो उसे व्यर्थ कैसे कह सकते है | वह तो सर्व व्याप्त है | अत: हमे सतत उसका स्मरण करना चाहिये | <br /> <br /> <br />Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/05253761160382665824noreply@blogger.com