tag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post1714514553984151662..comments2024-01-21T18:02:04.156+05:30Comments on समर्थ रामदास - साहित्य : श्लोक १८८Kalyan Swami http://www.blogger.com/profile/08821565452313740246noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post-84170097073995746092013-08-25T15:15:42.861+05:302013-08-25T15:15:42.861+05:30श्लोक १८८.......
देहे भान हे ज्ञान शस्त्रे खुडावे ...श्लोक १८८.......<br />देहे भान हे ज्ञान शस्त्रे खुडावे |<br />विदेही पणे भक्ति मार्गेचि जावे ||<br />विरक्ति बळे निंद्य सर्वे त्यजावे |<br />परी संग सोडूनि सुखि रहावे ||१८८||<br />हिन्दी में........<br />देह भान ये ज्ञान शस्त्रों से ना जाता |<br />विदेही होकर ही भक्ति मार्ग है मिलता ||<br />विरक्ति के बल से निंद्य सर्व ही त्यजता |<br />पर दुसंग छोड ही सुख है मिलता ||१८८||<br />अर्थ..... श्री समर्थ रामदास जी कहते है कि हे मानव मन ! ज्ञान शास्त्र से अहंकार का निर्मूल नाश करके भक्ति के मार्ग पर चलना चाहिये | विरक्ति के बल से निंदनीय कार्य छोड देना चाहिये | साथ ही दुसंग छोड कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहिये | सुख से जीवन व्यतीत करना चाहिये |lochan katehttps://www.blogger.com/profile/16403239198792263722noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4738998531219570094.post-31498208170571411082013-08-23T22:51:01.214+05:302013-08-23T22:51:01.214+05:30देहभान म्हणजे मी पणा ,अहंता ,त्यामुळे आलेले षड्विक...देहभान म्हणजे मी पणा ,अहंता ,त्यामुळे आलेले षड्विकार ,देह म्हणजे मी ही भावना तू सोडून दे आत्मानात्म विवेक केला की या जड देहापासून मी वेगळा आहे असे समजते .मी कोणीच नाही सर्व काही आत्माच आहे हे जेव्हा समजते तेव्हा नववी म्हणजे आत्मनिवेदन भक्ती साकार होते .विदेही अवस्था प्राप्त होते .विदेह्मुक्तावस्था प्राप्त होते विदेहावास्था प्राप्त झाली तरी प्रारब्ध भोगाने खंडीत होते .पुन्हादेह्भान येते .तेव्हा मात्र काळजीने वागावे लागते .निंद्य आचरण त्याला टाळावे लागते .पण कर्म तर करावेच लागते .पण ते योग्य कर्म कसे होईल ते काळजी पूर्वक पहावे लागते .तरच देहभान विसरून आत्मस्वरुपात सुखाने रहावे लागते .<br /><br />suvarna lelehttps://www.blogger.com/profile/11156252283324612159noreply@blogger.com