Friday, January 27, 2012

श्लोक १०९

II श्रीराम समर्थ II


मना सर्वदा सज्जनाचेनि योगें।
क्रिया पालटे भक्तिभावार्थ लागे॥
क्रियेवीण वाचाळता ते निवारी।
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी॥१०८॥


डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण 

जय जय रघुवीर समर्थ !

Friday, January 20, 2012

श्लोक १०८

II श्रीराम समर्थ II


मना सर्वदा सज्जनाचेनि योगें।
क्रिया पालटे भक्तिभावार्थ लागे॥
क्रियेवीण वाचाळता ते निवारी।
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी॥१०८॥



डॉक्टर सुषमाताई वाटवे यांचे या श्लोकावरिल श्राव्य निरूपण


जय जय रघुवीर समर्थ !
 
 














Friday, January 13, 2012

श्लोक १०७

II श्रीराम समर्थ II




मना कोपआरोपणा ते नसावी।
मना बुद्धि हे साधुसंगी वसावी॥
मना नष्ट चांडाळ तो संग त्यागीं।
मना होइ रे मोक्षभागी विभागी॥१०७॥






जय जय रघुवीर समर्थ !

Friday, January 6, 2012

श्लोक १०६

II श्रीराम समर्थ II



बरी स्नानसंध्या करी एकनिष्ठा।
विवेके मना आवरी स्थानभ्रष्टा॥
दया सर्वभुतीं जया मानवाला।
सदा प्रेमळू भक्तिभावे निवाला॥१०६॥